3000 वर्षों तक खाए बिल्वपत्र,जानिए मां दुर्गा के नौ शक्ति के दूसरे स्वरूप की महिमा।

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शारदीय नवरात्रि की नवशक्ति में मां दुर्गा का दूसरा रूप मां ब्रह्मचारिणी का हैं । मां ब्रह्मचारिणी का यह रूप भक्तों और सिद्ध, मुनियों सहित समस्त को अनंत फल प्रदान करता हैं इनके पूजन से वैराग्य, त्याग, तप, सदाचार और सयंम में वृद्धि होती हैं

इन्हे क्यों कहा जाता है ब्रह्मचारिणी और कैसा हैं इनका स्वरूप 

ब्रह्मचारिणी का अर्थ होता हैं तप की चारिणी अर्थात तप का आचरण करने वाली। माई ब्रह्मचारिणी का यह स्वरूप पूर्ण रूप से ज्योतिर्मय,अत्यंत,भव्य है। जहां इनके दाएं हाथ में जप की माला रहती हैं वहीं बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हुए हैं।

 

इनके जन्म को लेकर क्या हैं पौराणिक मान्यताएं  

पौराणिक कथाओं के अनुसार पूर्वजन्म में हिमालय के घर में इनका जन्म हुआ था। और नारदजी से पउपदेश प्राप्त कर इन्होंने भगवान भोलेनाथ को पति रूप में प्राप्त करने हेतु घोर तपस्या की थी। इसी कठिन तपस्या और तपो बल के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना जाता है। मान्यता है की इन्होने एक हजार वर्षों तक केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया। साथ ही कई दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे भीषण ठंड, घोर वर्षा और तपती धूप के घोर कष्ट सहते हुए भगवान शिव की आराधना में लगी रहीं । 3 हजार वर्ष तक इन्होंने जमीन में गिरने वाले सूखे बिल्व पत्र खाए और शिव आराधना में लीन रहीं। मान्यता है की इसके बाद उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिया था।

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और हजार वर्षों तक बिना जल ग्रहण किए निर्जला ही बिना किसी आहार के रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया। ऐसी घोर त्याग भरी तपस्य के कारण ही देवी का शरीर क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को देख उनको करते हुए उन्हें पूज्यनीय बताया साथ ही पिता सहित ऋषि, मुनियों ने आग्रह किया की आप की तपस्या पूर्ण हो गई है आप को घर लौट जाना चाहिए और जल्द ही आप को पति के रूप में भगवान शंकर प्राप्त होंगे । इस प्रकार मां ब्रह्मचारिणी अपने पिता के आग्रह और ऋषि मुनियों के आग्रह से घर लौट गईं जहां उन्हें पति के रूप में शिव मिल जाते हैं